Tuesday, July 6, 2010

अचरज वाली चीज तो है ही वो

संसार के सबसे बडे दादा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी पर एकाएक बहुत बुरी तरह से ‘‘फिदा’’ हो गये। उन्होंने उनकी तारीफ में कसीदे कढते हुये कहा कि जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो सारी दुनिया उन्हें सुनती है यदि देखा जाये तो बराक ओबामा ने सौ फीसदी सच बात कही है क्योंकि जैसे किसी मां बाप को बच्चा पहली बार मां या पापा कह दे, जैसे किसी लडके को कोई लडकी पहली बार ‘‘आई लव यू’’ कह दे, जैसे किसी भिखमंगे को अचानक लाख रूपये की लाटरी मिल जाये, जैसे किसी बेरोजगार को नौकरी मिल जाय, जैसे विवेक ओबेराय को ऐश्वर्या मिल जाये, जैसे हर बार जमानत जब्त होने वाले नेता को चुनाव में जीत मिल जाये तो इन तमाम लोगों को जितनी खुशी होगी उतनी ही खुशी बराक ओबामा को मनमोहन सिंह को बोलते हुये देखकर हुई क्योंकि उन्हेंभी इस बात की पुख्ता जानकारी ह नरसिंहाराव के बाद ये हिन्दुस्तान के दूसरे ‘मौनी
बाबा’ है जो भारत में राज कर रहे है शायद यही कारण था कि जब मनमोहन सिंह को बराक ओबामा ने बोलते हुये देखा तो उनका रोम रोम खुशी से भर गया मारे खुशी के उन्होंने कह दिया कि जब मनमोहन सिंह जी बोलते हैं तो सारी दुनिया उन्हें सुनती है एक हिसाब से उनकी बात में दम है क्योंकि कोई ‘‘लंगडा’’ यदि चलने लगे कोई ‘‘अंधा’’ देखने लगे कोई ‘‘विकलांग’’ तैरने लगे कोई ‘‘हवाई जहाज’’ पानी में चलने लगे और ‘‘रेलगाडी’’ हवा में उडने लगे तो उसे सारी दुनिया अचरज से देखेगी ही यही मन मोहन सिंह के साथ हुआ. जो इंसान कभी कुछ बोलता ही नही है उसे बोलता देख बराक ओबामा का आश्चर्य में आना स्वाभाविक था. बराक ओबामा तो फिर भी विदेशी है देश के ही ऐसे करोडो लोग हैं जिन्होंने कभी मनमोहन सिंह के ‘‘मुखारबिन्द’’ से शब्दों को झडतें देखा या सुना नहीं है है उनके मुंह पर एक अदृश्य पट्टी बंधी हुई है और जब जरूरत होती है वे दस जनपथ में जाकर अपनी पट्टी का थोडा सा हिस्सा खुलवा कर आ जाते हैं और जितना वहां से आदेश होता है उतना बोल कर फिर पट्टी के यथास्थान लगा लेते हैं पिछले दिनों देखो न छै साल में बार कितनी ‘‘रिक्वेस्ट’’ के बाद उन्हे पत्रकारों से बात करने की ‘‘परमीशन’’ मिली. पत्रकार लोग भी भारी भारी प्रश्नावलियां लेकर पहुच गये सिंह साहब की पत्रकारवार्ता में सोचा था सब कुछ पूछ डालेंगे एक ही झटके में पर साहब जी को तो जितने की परमीशन मिली थी वे उतना ही बोले. धरे के धरे रह गये पत्रकारों के सवाल. बार बार कुरेदने पर उन्होंने इशारे इशारे में समझा दिया कि भाई लोगों क्यो मेरी कुरसी खतरे में डाल रहे हो जितना आदेश था बतला दिया इसके आगे एक शब्द भी बोलने की मनाही है तो मैं क्या करूं? यही कारण था कि उन्हे बोलता देख ‘‘बराक’’ ‘‘अवाक’’ रह गये पर शायद लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि अमेरिका में जाकर बोलने पर इसलिये उन पर कोई बंदिश नहीं थी क्योंकि बोलने वाला और बोलने वाले को परमीशन देने वाला दोनों ही अमेरिका के पिछलग्गू हैं

दीर्घ विश्राम के बाद फिर हाज़िर हूँ मित्रो

इस देष के लोगों और मीडिया को लगता है दूसरा कोई काम नहीं बचा है जरा सी बात हुई नही ंकि सारी दुनिया सर पर उठा लेते हैं सरकार ने रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के भाव क्या बढा दिये सारे देष में जेैसे भूचाल सा आ गया. उधर ममता दीदी नाराज हो गई इधर भाजपा ने हमेषा की तरह तत्काल से पेष्तर अपने मनमोहन सिंह से स्तीफा मंाग लिया दूसरे दल प्रदर्षन करने में जुट गये अखबारों में तमाम ‘‘लुगाईयों’’ की फोटो छपने लगी कि इस मंहगाई के बढने से उनका सारा बजट बिगड जायेगा. अब वे कैसे रोटीे बनाकर अपने ‘मरद’ और बाल बच्चों को खिलायेंगी ? अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि दुनिया में ऐसी कौन सी चीज है जो बढती नहीं है ? बच्चा पैदा होता धीरे धीरे बढता है और देखते ही देखते जवान हो जाता है पेड पौधे आदमी लगाता है वे भी पानी और धूप पाकर बढने लगते हैं और फिर पेड का रूप धारण कर लेते हैं नौकरी जब इंसान ज्वाईन करता है तो तनखा कितनी कम होती है फिर धीरे धीरे उसमें ‘‘इंन्क्रीमेन्ट’’ लगते हैं मंहगाई भत्ता बढता है हाउस रेन्ट बढ कर मिलने लगता है और तनखा में बढोतरी होती जाती है यही हाल पोस्ट का होता है जो पहले ‘क्लर्क’ के रूप में भरती होता है वो कुछ ही सालों में ‘अफसर’ हो जाता है. जब देष में भ्रटाचार बढ रह है, आबादी बढ रही है, गंुडे लुच्चे बढ रहे हैं, नेता बढ रहे हैं अपराधी बढ रहे है, गरीबी और अमीरी देानों बढ रही ह.ै जब सारी की सारी चीजें बढती जा रही है तो यदि मंहगाई भी बढ गई तो इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की जरूरत भला क्या है? जनता तो चाहती है कि मंहगाई भर का ‘‘विकास’’ न हो, वह अविकसित होकर रह जाये,उस पर भर जवानी न आये तो ऐसा तो होना संभव नहीं है उसको भी हक है सबसे साथ बढने का. आखिर है तो वो भी इसी देष की सदस्य. जब हर कोई जवान हो रहा है पर मंहगाई बेचारी बच्ची बनी रहे ये तो गलत बात है न जब सरकार हजारों रूपये तनखा बढा देती है चौथा पांचवा, छटवा, सातवा पता नही कौन कौन सा आयोग बैठाकर तनखा में बढोतरी कर देता है तब कोई ‘‘चूं’’ भी नहीं करता कि हे सरकार क्यों हमारी तनखा बढा रही हो हम तो काम धेले का नही करते सचमुच यदि काम के हिसाब से तनखा मिलने लगी तो नगर निगम हो या कलेक्ट्रेट या और कोई दूसरा सरकारी दफतर वहां के हर कर्मचारी को उल्टा सरकार के पास हर महीने पैसे जमा करने पडेंग.ें अरे भाई मंहगाई बढ रही है तो वेतन भी तो बढ रहा है और फिर जितने लोग हाय तौबा मचा रहे है उनसे पूछो कि हुजूर जब पैट्रोल दस रूपैया लीटर था आप तब भी उतनी गाडी चलाते थे और आज पचास रूपया है तो भी उसको उतना ही रगड रहे हो. गैस के दाम बढने से हलाकान हो रही गृहणियाों से भी कोई पूछे कि माताओ बहनों गैस के दाम बढने के बाद क्या कभी आपने ‘‘चूल्ह’े’’ में, ‘‘कोयले की या बरूदे की सिगडी’’ में रोटी बनाने की कोषिष करी है अपने को भी मालूम है कि इसका उत्तर ना ही हेगा ये ते ‘‘चोचले बाजी’’ है पहले भी ऐसी ‘‘नौटंकिया’’ होती आई हैं पर सरकार भी कोई कम उस्ताद तो है नही. अभी गैस में पैतीस रूपया बढे है ज्यादा हल्ला मचने के बाद उसमें पांच रूपये की कटौती कर देगी हल्ला मचाने वाली भी शांत हो जायेंगे और सरकार का तीस रूपये बढाने का उदेदष्य भी पूरा हो जायेगा. वैसे सी आजकल बीस पच्चीस पैतीस रूपये की औकात ही क्या है जहां हर नेता और अफसर के पास करोडो की संम्पति हो वहां इस तरह की छोटी मोटी बढोतरी से उनकी सेहत पर कोई फर्क नही पडता हां फर्क पडता है गरीब की पीठ पर लेकिन उस गरीब की चिन्ता किस को है यदि आप गरीब हो तो उसमें अमीर या सरकार क्या करे? अपने करमों का फल भोगो. अपनी तो मंहगाई को एक ही सलाह है कि तुम तो जी भर के बढो जिसको सामान लेना होगा लेगा जिसे नही लेना होगा नहीं लेगा. इनके चक्कर में तुम अपने विकास पर ‘‘ब्रेक’’ मत लगाना क्योंकि यदि एक बार इन मीडियावालों की ‘‘चिल्लपों’’ से डर जाओगी ते ये लोग जब चाहे तुम्हे दम देते रहेंगे तुम तो शान से बढो हर कोई आगे बढने की कोषिष में अपनी पूरी जिन्दगी लगा देता है और वो ही तुम करो समझ गईं न?

Thursday, June 4, 2009

इसके लिये सर्वे की क्या जरूरत थी ?

चैतन्य भटट
हांगकांग के पोलिटिकल एंड इकानामिक रिस्क कंसलटेंसी ने हाल ही में एक सर्वे किया है जिसमें यह बात सामने आई कि हमारे ‘‘महान भारत‘‘ के राजनेता सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं और देश के नौकरशाह सबसे ज्यादा सुस्त। इस सर्वे में कहा गया है कि हिंदुस्तान के नौकरशाहों के साथ काम करना बेहद पीडादायक होता है उनके काम करने की गति बहुत धीमी होती है वे सुधार में सबसे बडा रोडा है और जिस तरह से वे अपने कामों को अंजाम देतें है वो किसी भी तरह से ठीक नही हैं अपने को तो एक बात समझ से बाहर है कि इतनी सी बात का पता लगाने के लिये इस एजेन्सी ने क्यों इतना वक्त और पैसा बर्बाद किया। किसी भी राह चलते आदमी से पूछ लेते कि भैया बताओ आपके देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट कौन है? तो सोता हुआ आदमी भी एक ही झटके में कह देता ‘‘नेता‘‘ और कौन? किसी नवजात शिशु से सूतिका ग्रह में पूछ लेते कि बेटा बताओ कि जिस देश में तुम अभी हाल ही में जन्मे हो वहां सबसे ज्यादा पैसा खाने वाला कौन है? तो वो भी साफ कह देगा कि ‘‘नेता‘‘ और जब उससे पूछोगो कि नौकरशाही के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है तो वो इतना ही कहेगा कि भाईसाहब मै पैदा तो हो गया हूं पर मेरा ‘‘बर्थ सार्टिफिकेट‘‘ कब मिल पायेगा इसकी कोई गैरंटी नहीं है ये भी हो सकता है कि मेरा ‘‘बर्थ और ‘‘डेथ सार्टिफिकेट‘‘ एक साथ ही बनें क्योकि यदि मेरे बाप ने सिर्फ आवेदन दिया और उसके साथ गांधी जी की फोटो वाला नोट संलग्न नही किया तो वो ऐडिया रगडता रहेगा पर मेरा जन्म प्रमाणपत्र वो अपने जीते जी तो नही बनवा सकेगा। इतनी सी बात के लिये इतना बडा सर्वे। इन विदेशी लोगों को भी लगता है कुछ काम बचा नही है सो बेठे ठाले इस तरह के सर्वे में अपना और दूसरों को समय बरबाद करते रहते हैं। अरे सर्वे वालो ये तो सोचो कि एक आदमी जब नेता बनता है तो उसे कितने पापड बेलने पडते हैं लाखों रूपये अपने आकाओं की ‘‘जय जयकार‘‘ में खर्चने पडते हैं उनके लिये भीड इकठठी करने, गाडी घोडों की व्यवस्था, फूल मालाओं में कितना पैसा खर्च होता है और जब इन सब इम्तहानों के बाद टिकट मिलती है तो चुनाव में करोडों रूपये बहाने पडते हैं भले ही हिसाब वे हजारों का दें। अब जब इतना पैसा खर्च होगा तो वो कमायेगा नही तो क्या ‘‘तानपूरा‘‘ लेकर भजन करेगा? अपना ही पैसा वसूल करने के लिये ठेके, टांसफर पोस्टिंग के लिये जब वो पैसे लेता है तो लोग बाग उसको भ्रष्ट कहने लगते हैं अरे भाई ये तो बिजनिस है कल पूंजी लगाई थी आज वसूली नही करेगे तो क्या करेंगे ? घर लुटा कर तमाशा भला कौन देखना पसंद करेगा? रहा सवाल नौकरशाहों को तो ये सर्वे वाले इनको ‘‘सुस्त से चुस्त‘‘ कैसे बनाया जाता है ये तरकीब नही जानते यदि ये तरकीब जान लेते तो कभी आरोप न लगाते कि भारत की नौकरशाही सुस्त है। चलो उन्हें नही पता तो हम बतलाये देते हैं इनको ‘‘सुस्त से चुस्त‘‘ बनाने का तरीका। बस नोट रखो टेबल पर और फिर देखो फाईल में कैसे पंख लगते हैं जिस काम में एक महीना लगता होगा यदि वो आधे घंटे में न हो जाये तो यह बंदा अपना सर मुडाने के लिये तैयार है सबके बाल बच्चे हैं सबकी बीबीयां है उनके खर्च क्या अकेली तनख्वाह से पूरे हो सकते हैं जब तब ‘‘ऊपरी इनकम‘‘ न हो तब तब काम करने का मजा भी तो नही आता। तनख्वाह तो इसलिये मिलती है कि काम करना है पर काम कब और कितनी जल्दी करना है इसके लिये तो जब तक जेब दो नंबर के नोटों से गरम नही हो जाती तब तक काम करने की गरमी कहां पैदा होती है? अपनी तो इन सर्वे वालों को एक राय है कि यदि इन नौकरशाहों की चुस्ती और फुरती देखना हो तो किसी भी सरकारी दफतर में चले जाओं और कामकरवाने के पहले ही कडकडाते नोट रख दो फिर देखो कैसे काम होता है एक बार ये प्रयोग करके देखो अगली बार जब सर्वे का रिजल्ट घोषित करोगे तो सबसे चुस्त भारत के ही नौकरशाह होंगे क्या समझे

Wednesday, June 3, 2009

एक के तीन नही जीरो हो गये

अहमदाबाद के ठग अशोक डडेजा को पुलिस ने पकड लिया उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो लोगों के पैसे ‘‘तिगुने‘‘ कर देता था। पुलिस का आरोप है कि उसने लोगों को एक का तीन करने का लालच देकर करोडो रूपये ठग लिये और उनकी ही शिकायत पर उसने अशोक डडेजा को पकडा है। अभी तक तो अपन ने मशहूर क्रिकेट खिलाडी ‘‘अजय डडेजा‘‘ का ही नाम सुना था पर अब एक और डडेजा ने इस क्रिकेटर की ख्याति को भी पीछे छोड दिया है। लोग बाग अपना सारा सामान, गहने बेचकर ठग राज के दरबार में पैसे जमा करते थे और वो एक हफते में उन पैसों को तीन गुना करके वापस कर देता था पर बाद में पता चला कि भाई जी लोगों के करोडो रूपये लेकर फरार हो गये। अब लुटे पिटे लोग पुलिस के दरवाजे पर दस्तक दे रहे है कि उन्हें उनके पैसे वापस दिलवाओ अब इनसे कोई पूछे कि भैया जी जब एक के तीन हो रहे थे तब तो आपने पुलिस से आकर नही पूछा कि हम पैसे तिगुने करवायें या न करवाये। उस वक्त तो किसी को कानों कान खबर न हो लोग इस कोशिश में लगे रहते थे कि कहीं ऐसा न हो कि पडोसी अपने पैसे तिगुने करवाने पंहुच जाये और उनके पैसे तिगुने न हो पाये। उस वक्त तो अशोक डडेजा इन्हें कुबेर के रूप में दिखाई दे रहा था और आज वही कुबेर उन्हें महाठग, डाकू, धोखेबाज, चीटर और पता नहीं क्या क्या दिखाई दे रहा है। दुनिया में ऐसा कौन होगा जो एक हफते में आपके एक लाख तीन लाख में बदल दे पर कहते हंै न ‘‘लालच बुरी बलाय‘‘ हर एक को लग रहा था कि ऐसा मौका फिर कभी आये न आये इसलिये जितना माल है उसको तिगुना करवा लो। अपने अशोक डडेजा ने भी कई लोगों के नोट तिगुने कर भी दिये और जब ये खबर दूसरों को लगी तो अशोक भाई के यहां लाईन लगने लगी कोई बैग में नोट भरकर ला रहा था तो कोई बोरों में। कोई अपने एक हार को तीन हार में तब्दील करवाना चाह रहा था तो किसी को बीबी के तमाम गहने तिगुने करवाने की लालसा थी। बस फिर क्या था अशोक डडेजा देखते ही देखते भगवान बन गया और लोग उसके भक्त। किसी ने मना भी किया कि भैया इस चक्कर में मत पडो तो वो सलाह देने वाला भला आदमी उन्हें दुश्मन जैसा दिखाई देने लगा पर अब जब सारी जायजाद लुट गई है तो लोग बाग जार जार आंसू बहा रहे है पर अब रोने से क्या होगा ? जो कुछ लुटना था वो तो लुट ही गया भले ही पुलिस ने उसके पास से एक करोड से भी ज्यादा की रकम बरामद कर ली हो पर यह रकम तो लुटने वालों के लिये ऊँट के मुंह में जीरे‘‘ के समान है और फिर ये रकम उसके पास है यानी पुलिस के पास जहां से वापस मिलना ‘‘आसमान से तारे तोडने‘‘ जैसा है इन लुटे पिटे लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति है पर क्या करें हिन्दुस्तान में ऐसे लोग आपको हर मोड, हर गली और हर चौराहे पर मिल जायेगे जो लूटने के लिये तैयार है और वे भी जो लुटने के लिये तैयार बैठे हैं। अब पोजीशन ये है कि एक के तीन करवाने वालों को माल एक का तीन नही बल्कि जीरों हो गया है इस जीरो को लेकर बैठो और अशोक डडेजा को जी भर कर गालियां दो पर माल जो जाना था वो तो चला ही गया न गालियां माल तो वापस ला नही सकती?

Monday, May 25, 2009

सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया

लो देखो अब हर वो राजनेता और राजनीतिक दल अपने अपने दलों के नेताओं के साथ मुंह लटका कर अपनी हार की समीक्षा करने में लग गया है। न उन्हें खाने की चिन्ता है न पीने की। वे न तो किसी से मिल रहे है और न ही उनसे कोई मिल पा रहा है। एक कमरे में बंद ये नेता गलबहियां डालकर जार जार आंसू बहाते हुये अपने हार जाने का गम गलत कर रहे हैं कोई कह रहा है कि जनता ने हमें धोखा दे दिया तो कोई कह रहा है कि हमने जनता से दूरी बना ली थी जिसके कारण हमें ये दिन देखना पड रहा है। चाहे वे लेफट वाले हों या फिर लालू जी या फिर रामविलास पासवान और या फिर अपने पीएम इन वेटिंग आडवानी जी। हरेक का चेहरा लटका हुआ है और चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई है। लालू जी कह रहे हैं कि अब वे एक साल दिल्ली की राजनीति नहीं करेंगे। अरे भैया दिल्ली की राजनीति तो तब करोगे न जब दिल्ली में कोई पोस्ट होगी। बिहार और दिल्ली दोनो जगह की पोस्टें तो आप अपने करमों से गंवा बैठे हो बिहार में जिस कुरसी पर बरसों तक आपने और आपकी पत्नी ने राज किया उस कुरसी पर अब नीतीश कुमार कब्जा जमाये बैठे हैं इधर दिल्ली में ‘‘लेडीज फस्र्ट‘‘ के नाते ममता ने आपकी खाली कुरसी पर अपना रूमाल रख कर उसको एंगेज कर दिया है अब बेचारे लालू जाये तो जायें कहां? यही हाल अपने लेफट के नेताओं का है हार की समीक्षा में जुटे है भाई लोग। एक कह रहा है हमें जनता के पास जाना होगा उसके और हमारे बीच काफी दूरी बढ गई है। अब ये बात समझ में आ रही है जब जनता ने बत्ती दे दी वरना पहले तो अपने आप को ‘‘जोधा‘‘ समझने लगे थे ये लोग। जब चाहे सरकार को अडी पटकते रहते थे कि यदि हमारी बात नही मानी तो हम सरकार की सारी की सारी कुरसियां गिरा देंगे पर हुआ उलटा वे तो किसी की कुरसी नही खिसका पाये उलटे उनकी ही कुरसियां खिसक गई अब इन कुरसियों के ‘‘हत्थे‘‘ पकड कर वे रो रो कर हलाकान हो रहे हैं यही हाल अपने नेता पासवान जी का है कभी जीतने का ‘‘रिकार्ड‘‘ बनाया था भाई साहब ने पर जनता ने ऐसी पटखनी दी कि अपनी पार्टी तो छोडो अपने खुद के ही जीतने के लाले पड गये। हाल ये हो गया है कि दिल्ली आयेगे तो सिर्फ घूमने फिरने के लिये क्योकि अब कोई ‘‘धनी धोरी‘‘ तो बचा नही है उनका दिल्ली में। बहुत ऐश कर लिये थे अब राम धुन भजो और पांच साल तक इंतजार करो कि शायद किस्मत फिर पलटी खा जाये। इन नेताओं को अब सब कुछ याद आ रहा है जैसे फिल्मों में ‘‘फ्लेशबैक ‘‘ में पुरानी बातें दिखाई जाती है वैसा ही फ्लेशबैक इनको भी नजर आ रहा है। अपने अपने मंत्रालय के सामने मूंगफली चबाते हुये ये सोच रहे है कि वो भी क्या दिन थे जब अपन यहां के राजा थे पर आज दरबान भी बिना ‘‘पास‘‘ लिये वहां घुसने नही दे रहा है किसी ने सच ही कहा है समय किसी का नही होता शायद इसी को आधार मानकर किसी गीतकार ने ये गीत लिखा था ‘‘सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया‘‘ यह गाना इन पर पूरी तरह सटीक बैठता है।

Saturday, May 23, 2009

कोर्ट का फैसला है मानना तो होगा ही

देश में सबसे बडी अदालत ही होती है। अदालतें सरकारी फैसलों को भी बदलने का दम रखती है उस पर देश का सुप्रीम कोर्ट तो सबसे बडी ताकत रखता है। उसके न्यायाधीश जो निर्णय देते हैं वो कानून बन जाता है इसलिये यह बताया जाता है कि कोर्ट के फैसलों को सर माथे पर रखना चाहिये। बडे बडे लोग जब कोर्ट से मुकदमा हार जाते है उसके बाद भी ये ही कहते हैं कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है अब जिस न्यायालय की इतनी ताकत हो यदि वो कह रहा हो कि बीबी जैसा कहे वैसा ही करो तो जिन्दगी आराम से गुजरेगी तो कौन ऐसा बेबकूफ होगा जो जिन्दगी आराम और शांती से गुजारना न चाहता हो। वैसे भी कोर्ट ने तो यह बात काफी लेट कही है यहां तो हर आदमी पहले से ही बीबी की हां में हां मिला रहा है और ये जरूरी भी है क्योंकि हरशादी शुदा मर्द को मालूम है कि बीबी से पंगा लेना अपने आप को संकट में डालना ही है क्योकि जो लोग बीबी की बात नही मानते हैं उन्हे पत्नी पीडित संघ बनाना पड जाता है जहां तक अपने को मालूम है भारतीय संस्कार में नारी को सबसे बडा दर्जा दिया गया है दुर्गा जी ने बडे बडे राक्षसों का संहार कर दिया था। महाकाली का तो रूप ही ऐसा होता है कि आदमी मारे भय के कांप जाता है उनके तेज के सामने किसी का तेज नही ठहरता। देश के सबसे बडे कोर्ट ने ये सुझाव बडे अनुभव के बाद दिया है ऐसा लगता है और तो और उन्होंने तो वकीलों को ये सलाह भी दे दी है कि अपनी कमाई ले जाकर सीधे बीबी के हाथों में रख दो अपना मानना तो ये है कि अस्सी परसेंट मर्द अपनी तनख्वाह अपनी बीबी के हाथों में ही पहले से ही रखते आ रहे है क्योकि कहते है न पैसा सारी विवादों की जड होता है। पैसा भाई भाई बाप बेटे में जब झगडा करवा सकता है तो मियां और बीबी की तो बिसात ही क्या है सुप्रीम कोर्ट के इस सुझाव के बाद लाखों लोगों ने अपनी अपनी बीबियों को ही अपना खुदा मान लिया है क्योकि वे भी जानते है कि कोर्ट जो कुछ भी कहता है पूरें तथ्यों के आधार पर ही कहता है जहां तक बीबियों को सवाल है तो इसमें तो कोई शक नही है कि यदि बीबी प्रसन्न हो तो आपके सारे गुनाह वो माफ कर देती है बस उसको खुश करने की कला आपको आनी चाहिये और ये भी कोई ज्यादा कठिन काम नही है कभी कभार साडी लाकर दे दो। कभी गहने बनवा दो। किसी दिन लम्बी सैर पर चले जाओ। उसकी खूबसूरती की तारीफ कर दो। उसके भाई बहनों को कोई भेंट दे दो। अपने ससुराल की जम कर बडाई कर दो। पडोसन को उसकी तुलना में बदसूरत बतला दो भले ही वो ऐश्वर्या राय ही क्यों न हो। बस इतने से तो गुर है जो बीबी को खुश रखने के लिये पर्याप्त है। इतने में ही तो उसे लगता है कि उसका मर्द कितना अच्छा और उसे जी जान से चाहने वाला है और वो खुश हो जाती है। कहते हैं न पति और पत्नी गाडी के दो पहिये होते हैं अपना ख्याल तो ये है कि हर शादी शुदा मर्द को पिछला पहिया बन जाना चाहिये और बीबी को बना देना चाहिये अगला पहिया। इससे फायदा ये होगा कि जहां जहां अगला पहिया जायेगा पीछे वाले को मजबूरी में उसके पीछे पीछे जाना ही पडेगा और जब वो उसके पीछे पीछे जायेगा तो गाडी के यहां वहां भटकने की गुंजाईश ही खत्म हो जायेगी। कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है उसे तो अपन ने पत्थर की लकीर मानकर उस पर अमल भी शुरू कर दिया है क्योंकि कि अपन भी चाहते हैं कि जितने दिनों की जिन्दगी बची है सुख और शांति से गुजर जाये।